Ab Kaha Dusro Ke Dukh Class 10: NCERT Class 10 Sparsh Chapter 12

Ab Kaha Dusro Ke Dukh Class 10: NCERT Class 10 Sparsh Chapter 12
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In today's fast-paced world, where everyone is caught up in their own lives, the poem Ab Kahan Dusro Ke Dukh Se Dukhi Hone Wale by Gopaldas Neeraj comes as a poignant reminder of the fading human values of empathy and compassion. This powerful piece, a part of the Hindi curriculum for class 10, encourages young minds to ponder upon the emotional disconnect that is prevalent in society today.

The essence of this poem is captured through the heart-touching lines that question the whereabouts of those who once deeply felt the sorrows of others. It nudges students to think deeply about the emotional bonds that connect us as humans. The summary of this poem can serve as a valuable lesson in empathy, a trait that is much needed in the modern world.

As part of their academic journey, class 10 students delve into this poem, not just for its literary beauty, but also for the ethical and moral questions it raises. Answering questions on this poem helps them to not only understand the text but also to reflect on its wider implications in real life. It's crucial for them to grasp the message that sharing someone’s pain and helping them through tough times is what truly makes us human.

When discussing the theme in a classroom or answering questions related to it, teachers encourage students to interpret the poet’s thoughts and express what they feel about the changing dynamics of human relationships. It's about learning to be more sensitive to the feelings of others around us.

The answers to the questions from Ab Kaha Dusro Ke Dukh for class 10 are crafted in such a way that students can relate to them, ensuring that the learning is not just academic but also personal. Each question and its answer aim to evoke a sense of introspection about how we, as individuals, can make a difference in someone else’s life just by being there for them.

Moreover, these discussions and answers lay a foundation for students to become more emotionally intelligent, an attribute that is essential for their overall development. So, let's encourage our students to not just read and write about such powerful pieces of literature but also to live the values they teach us. Let's help them become the empathetic souls who are moved by the struggles of others and are motivated to lend a helping hand, rekindling the spirit that Gopaldas Neeraj so beautifully encapsulates in his work.

अध्याय-12: अब कहाँ दूसरों के दुःख से दुखी होने वाले

सारांश

इस पाठ में लेखक ने मानव द्वारों अपने स्वार्थ के लिए किये गए धरती पर किये गए अत्याचारों से अवगत कराया है। पाठ में बताया गया है की किस तरह मानव की न मिटने वाली भूख ने धरती के तमाम जीव-जन्तुओं के साथ खुद के लिए भी मुसीबत खड़ी कर दी है।

ईसा से 1025 वर्ष पहले एक बादशाह थे जिनका नाम बाइबिल के अनुसार सोलोमेन था, उन्हें कुरआन में सुलेमान कहा गया है। वह सिर्फ मानव जाति के ही राजा नहीं थे बल्कि सभी छोटे-बड़े पशु-पक्षी के भी राजा थे। वह इन सबकी भाषा जानते थे। एक बार वे अपने लश्कर के साथ रास्ते से गुजर रहे थे। उस रास्ते में कुछ चीटियाँ घोड़ों की टापों की आवाज़ें सुनकर अपने बिलों की तरफ वापस चल पड़ीं। इसपर सुलेमान ने उनसे घबराने को न कहते हुए कहा कि खुदा ने उन्हें सबका रखवाला बनाया है। वे मुसीबत नहीं हैं बल्कि सबके लिए मुहब्बत हैं। चीटियों ने उनके लिए दुआ की और वे आगे बढ़ चलें।

ऐसी एक घटना का जिक्र करते हुए सिंधी भाषा के महाकवि शेख अयाज़ ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि एक दिन उनके पिता कुएँ से नहाकर घर लौटे तो माँ ने भोजन परोसा। जब उन्होंने रोटी का एक कौर तोड़ा तभी उन्हें अपनी बाजू पर एक काला च्योंटा रेंगता दिखाई दिया। वे भोजन छोड़कर उठ खड़े हुए और पहले उस बेघर हुए च्योंटे को वापस उसके घर कुएँ पर छोड़ आये।

बाइबिल और अन्य ग्रंथों में नूह नामक एक पैगम्बर का जिक्र मिलता है जिनका असली नाम लशकर था परन्तु अरब में इन्हें नूह नाम से याद किया जाता है क्योंकि ये पूरी जिंदगी रोते रहे। एक बार इनके सामने से एक घायल कुत्ता गुजरा चूँकि इस्लाम में कुत्ते को गन्दा माना जाता है इसलिए इन्होनें उसे गंदे कुत्ते दूर हो जा कहा। कुत्ते ने इस दुत्कार को सुनकर जवाब दिया कि  ना मैं अपनी मर्ज़ी से कुत्ता हूँ और ना तुम अपनी पसंद से इंसान हो। बनाने वाला सब एक ही है। इन बातों को सुनकर वे दुखी हो गए और सारी उम्र रोते रहे। महाभारत में भी एक कुत्ते ने युधिष्ठिर का साथ अंत तक दिया था।

भले ही इस संसार की रचना की अलग-अलग कहानियाँ हों परन्तु इतना तय है की धरती किसी एक की नहीं है। सभी जीव-जंतुओं, पशु, नदी पहाड़ सबका इसपर सामान अधिकार है। मानव इस बात को नहीं समझता। पहले उसने संसार जैसे परिवार को तोड़ा फिर खुद टुकड़ों में बँटकर एक-दूसरे से दूर हो चुका है। पहले लोग मिलजुलकर बड़े-बड़े दालानों-आंगनों में रहते थे पर अब छोटे-छोटे डिब्बे जैसे घरों में सिमटने लगे हैं। बढ़ती हुई आबादी के कारण समंदर को पीछे सरकाना पड़ रहा है, पेड़ों को रास्ते से हटाना पड़ रहा है जिस कारण फैले प्रदूषण ने पक्षियों को भागना शुरू कर दिया है। नेचर की भी सहनशक्ति होती है। इसके गुस्से का नमूना हम कई बार अत्यधिक गर्मी, जलजले, सैलाब आदि के रूप में देख रहे हैं।

लेखक की माँ कहती थीं की शाम ढलने पर पेड़ से पत्ते मत तोड़ो, वे रोयेंगे। दीया-बत्ती के वक़्त फूल मत तोड़ो। दरिया पर जाओ तो सलाम करो कबूतरों को मत सताया करो और मुर्गे को परेशान मत करो वह अज़ान देता है। लेखक बताते हैं उनका ग्वालियर में मकान था। उस मकान के दालान के रोशनदान में कबूतर के एक जोड़े ने अपना घोंसला बना लिया। एक बिल्ली ने उचककर दो में से एक अंडा फोड़ दिया। लेखक की माँ से दूसरा अंडा बचाने के क्रम में फूट गया। इसकी माफ़ी के लिए उन्होंने दिन भर कुछ नहीं खाया और नमाज़ अदा करती रहीं।

अब लेखक मुंबई के वर्सोवा में रहते हैं। पहले यहाँ पेड़, परिंदे और दूसरे जानवर रहते थे परन्तु अब यह शहर बन चुका है। दूसरे पशु-पक्षी इसे छोड़े कर जा चुके हैं, जो नहीं गए वे इधर-उधर डेरा डाले रहते हैं। लेखक के फ्लैट में भी दो कबूतरों ने एक मचान पर अपना घोंसला बनाया, बच्चे अभी छोटे थे। खिलाने-पिलाने की जिम्मेदारी बड़े कबूतरों पर थीं। वे दिन-भर आते जाते रहते थे। लेखक और उनकी पत्नी को इससे परेशानी होती इसलिए उन्होंने जाली लगाकर उन्हें बाहर कर दिया। अब दोनों कबूतर खिड़की के बाहर बैठे उदास रहते हैं परन्तु अब ना सुलेमान हैं न लेखक की माँ जिन्हें इनकी फ़िक्र हो।


 

NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 10 HINDI SPARSH CHAPTER 12

मौखिक प्रश्न (पृष्ठ संख्या 114)

प्रश्न 1 निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-

a.   बड़े-बड़े बिल्डर समुद्र को पीछे क्यों धकेल रहे थे?

b.   लेखक का घर किस शहर में था?

c.   जीवन कैसे घरों में सिमटने लगी है?

d.   कबूतर परेशानी में इधर-उधर क्यों फड़फड़ा रहे थे?

उत्तर-

a.   बड़े-बड़े बिल्डर समुद्र को इसलिए धकेल रहे थे कि ताकि वे समुद्र के किनारे की जमीन पर कब्ज़ा कर सकें और उस पर बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ीकर लोगों को बसा सकें। ऐसा करके वे पैसा कमाना चाहते थे।

b.   लेखक का घर पहले ग्वालियर में था परंतु बाद में वह मुंबई के वर्सावा में रहने लगा।

c.   पहले जनसंख्या कम थी। लोगों के हिस्से में जमीन अधिक थी। वे बड़े-बड़े घरों और खुले में रहते थे। घर की तरह ही उनका दिल भी बड़ा हुआ करता था, परंतु जनसंख्या बढ़ने के साथ ही वे छोटे-छोटे घरों में रहने को विवश हो गए।

d.   कबूतर के जोड़े ने रोशनदान में दो अंडे दिए थे। उनमें से एक को बिल्ली ने फोड़ दिया और दूसरा सँभाल कर रखते हुए माँ से फूट गया। अपने अंडे फूटने से दुखी होने से कबूतर फड़फड़ा रहे थे।

लिखित प्रश्न (पृष्ठ संख्या 114-115)

प्रश्न 2  निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-

a.   अरब में लशकर को नूह के नाम से क्यों याद करते हैं?

b.   लेखक की माँ किस समय पेड़ों के पत्ते तोड़ने के लिए मना करती थीं और क्यों?

c.   प्रकृति में आए असंतुलन को क्या परिणाम हुआ?

d.   प्रकृति में आए असंतुलन का दुष्परिणाम बहुत ही भयंकर हुआ; जैसे-

·       विनाशकारी समुद्री तूफ़ाने आने लगे।

·       अत्यधिक गरमी पड़ने लगी।

·       असमय बरसातें होने से जन-धन और फ़सलें क्षतिग्रस्त होने लगीं।

·       आधियाँ और तूफ़ान आने लगीं।

·       नए-नए रोग उत्पन्न हो गए, जिससे पशु-पक्षी असमय मरने लगे।

e.   लेखक ने ग्वालियर से बंबई तक किन बदलावों को महसूस किया? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

f.    डेरा डालने से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।

g.   शेख अयाज़ के पिता अपने बाजू पर काला च्योंटा रेंगता देख भोजन छोड़कर क्यों उठ खड़े हुए

उत्तर-

a.   अरब में नूह नाम के एक पैगंबर थे जिनका असली नाम लशकर था। वे अत्यंत दयालु और संवेदनशील थे। एक बार एक कुत्ते को उन्होंने दुत्कार दिया। उस कुत्ते का जवाब सुनकर वे बहुत दुखी हुए और उम्र भर पश्चाताप करते रहे। अपने करुणा भाव के कारण ही वे ‘नूह’ के नाम से याद किए जाते हैं।

b.   लेखक की माँ पशु-पक्षियों के प्रति ही नहीं पेड़-पौधों के प्रति भी संवेदनशील थीं। वे सूरज छिपने के बाद पेड़ों के पत्ते तोड़ने से मना करती थी। उनका मानना था कि ऐसा करने पर पेड़ों को दुख होगा और वे रोते हुए बद्दुआ देते हैं।

c.   प्रकृति में आए असंतुलन का दुष्परिणाम बहुत ही भयंकर हुआ; जैसे-

·       विनाशकारी समुद्री तूफ़ाने आने लगे।

·       अत्यधिक गरमी पड़ने लगी।

·       असमय बरसातें होने से जन-धन और फ़सलें क्षतिग्रस्त होने लगीं।

·       आधियाँ और तूफ़ान आने लगीं।

·       नए-नए रोग उत्पन्न हो गए, जिससे पशु-पक्षी असमय मरने लगे।

d.   लेखक की माँ धार्मिक विचारों वाली महिला थी। वे मनुष्य से ही नहीं पशु-पक्षियों तक से प्रेम करती थीं। उनके घर की दालान में कबूतर ने दो अंडे दिए थे। उनमें से एक अंडा बिल्ली ने गिराकर फोड़ दिया था। दूसरा अंडा सँभालते समय उनके हाथ से टूट गया। अंडा टूटने का पछतावा करने के लिए उन्होंने पूरे दिन का रोज़ा रखा।

e.   लेखक ने ग्वालियर से मुंबई तक अनेक बदलाव देखे-

·       उसके देखते-देखते बहुत सारे पेड़ कट गए।

·       नई-नई बस्तियाँ बस गईं।

·       चौड़ी सड़कें बन गईं।

·       पशु-पक्षी शहर छोड़कर भाग गए। जो बच गए उन्होंने जैसे-तैसे यहाँ-वहाँ घोंसला बना लिया।

f.    डेरा डालने का आशय है-अपने रहने की व्यवस्था करना। जिस तरह मनुष्य जब कहीं बाहर जाता है तो अपने रहने का ठिकाना बनाता है। इसी प्रकार पक्षी भी रहने और अंडे देने तथा बच्चों की देखभाल के लिए डेरा डालते हैं।

g.   शेख अयाज़ के पिता अत्यंत दयालु और सहृदय व्यक्ति थे। एक बार वे कुएँ से स्नान करके लौटे और भोजन करने बैठ गए। अचानक उन्होंने देखा कि एक काला च्योंटा उनकी बाजू पर रेंग रहा है। उन्होंने भोजन वहीं छोड़ दिया और उसे छोड़ने उसके घर (कुएँ के पास) चल पड़े ताकि उस बेघर को उसका घर मिल सके।

प्रश्न 3  निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

a.   बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा?

b.   लेखक की पत्नी को खिड़की में जाली क्यों लगवानी पड़ी?

c.   समुद्र के गुस्से की क्या वजह थी? उसने अपना गुस्सा कैसे निकाला?

d.   ‘मट्टी से मट्टी मिले,

खो के सभी निशान,

किसमें कितना कौन है,

कैसे हो पहचान’

इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

a.   बढ़ती हुई आबादी ने पर्यावरण पर अत्यंत विपरीत प्रभाव डाला। ज्यों-ज्यों आबादी बढ़ी त्यों-त्यों मनुष्य की आवास और भोजन की जरूरत बढ़ती गई। इसके लिए वनों की अंधाधुंध कटाई की गई ताकि लोगों के लिए घर बनाया जा सके। इसके अलावा सागर के किनारे अतिक्रमण कर नई बस्तियाँ बसाई गईं । इन दोनों ही कार्यों से पर्यावरण असंतुलित हुआ। इससे असमय वर्षा, बाढ़, चक्रवात, भूकंप, सूखा, अत्यधिक गरमी एवं आँधी-तूफ़ान के अलावा तरह-तरह के नए-नए रोग फैलने लगे। इस प्रकार बढ़ती आबादी ने पर्यावरण में जहर भर दिया।

b.   पक्षियों का प्राकृतिक आवास नष्ट होने से पक्षी यहाँ-वहाँ शरण लेने को विवश हुआ। लेखक के फ्लैट के रोशनदान में दो कबूतरों ने अपना डेरा जमा लिया और उसमें अंडे दे दिए उन अंडों से बच्चे निकल आए थे। छोटे बच्चों की देखभाल के लिए कबूतर वहाँ बार-बार आया-जाया करते थे। इस आवाजाही में कई वस्तुएँ गिरकर टूट जाती थीं। इसके अलावा वे लेखक की पुस्तकें और अन्य वस्तुएँ गंदी कर देते थे। कबूतरों से होने वाली परेशानी से बचने के लिए लेखक की पत्नी को खिड़की में जाली लगवानी पड़ी।

c.   समुद्र के गुस्से की वजह थी-बिल्डरों की लालच एवं स्वार्थपरता। बिल्डरों ने लालच के कारण सागर के किनारे की भूमि पर बस्तियाँ बसाने के लिए ऊँची-ऊँची इमारतें बनानी शुरू कर दीं। इससे समुद्र का आकार घटता गया और वह सिमटता जा रहा था। मनुष्य के स्वार्थ एवं लालच से समुद्र को गुस्सा आ गया। उसने अपने सीने पर दौड़ती तीन जहाजों को बच्चों की गेंद की भाँति उठाकर फेंक दिया जिससे वे औंधे मुँह गिरकर टूट गए। ये जहाज़ पहले जैसे चलने योग्य न बन सके।

d.   इन पंक्तियों के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि सब प्राणियों की रचना अनेक तरह की मिट्टियों से हुई है, पर ये मिट्टियाँ आपस में मिलकर अपनी स्वाभाविकता रंग-गंध आदि खो चुकी हैं। अब वे सब मिलकर एक हो चुकी हैं। अब किस व्यक्ति में कौन-सी किस्म की मिट्टी कितनी है, इसकी पहचान कैसे की जाए। इसी तरह मनुष्य में भी सद्गुणों और दुर्गुणों का मेल है। किसमें कितना सद्गुण है और कितना दुर्गुण है यह कह पाना कठिन है।

प्रश्न 4 निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-

a.   नेचर की सहनशक्ति की एक सीमा होती है। नेचर के गुस्से का एक नमूना कुछ साल पहले बंबई में देखने को मिला था।

b.   जो जितना बड़ा होता है उसे उतना ही कम गुस्सा आता है।

c.   इस बस्ती ने न जाने कितने परिंदों-चरिंदों से उनका घर छीन लिया है। इनमें से कुछ शहर छोड़कर चले गए हैं। जो नहीं जा सके हैं उन्होंने यहाँ-वहाँ डेरा डाल लिया है।

d.   शेख अयाज़ के पिता बोले, ‘नहीं, यह बात नहीं है। मैंने एक घरवाले को बेघर कर दिया है। उस बेघर को कुएँ पर उसके घर छोड़ने जा रहा हूँ।’ इन पंक्तियों में छिपी हुई उनकी भावना को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

a.   प्रकृति अत्यंत सहनशील और उदार स्वभाववाली है। वह मनुष्य की ज्यादतियों और छेड़छाड़ को एक सीमा तक सहन करती है पर जब पानी सिर के ऊपर हो जाता है तब प्रकृति अपनी विनाशलीला दिखाना शुरू करती है। इस क्रोध में जो भी उसके सामने आता है, वह किसी को नहीं छोड़ती है। प्रकृति ने समुद्री तूफ़ान का रूप धारण कर अपने सीने पर तैरते तीन जहाजों को उठाकर समुद्र से बाहर फेंक दिया।

b.   इतिहास गवाह रहा है कि बड़े लोग प्रायः शांत स्वभाव वाले उदार और महान होते हैं। वे क्रोध से दूर ही रहते हैं। उनकी सहनशीलता भी अधिक होती है परंतु जब उन्हें क्रोध आता है तो यह क्रोध विनाशकारी होता है। यही स्थिति विशालाकार समुद्र की होती है जो पहले तो सहता जाता है, सहता जाता है परंतु क्रोधित होने पर भारी तबाही मचाता है।

c.   लेखक देखता है कि दिनों दिन जंगलों की सफ़ाई होती जा रही है। समुद्र के किनारे ऊँचे-ऊँचे भवन बनाए जा रहे हैं। इन स्थानों पर मानवों की बस्ती बन जाने से वन्य जीवों का प्राकृतिक आवास नष्ट हुआ है। इस कारण पक्षी एवं जानवर दोनों ही अन्यत्र जाने को विवश होकर शहर से कोसों दूर चले गए हैं। कुछ पक्षी प्राकृतिक आवास के अभाव में इधर-उधर भटक रहे हैं। वे मनुष्य के घरों की दालानों और छज्जों पर घोंसला बनाने को विवश हैं।

d.   शेख अयाज़ के पिता जीवों के प्रति दया भाव रखते थे। एक बार वे कुएँ से नहा करके वापस आए और खाना खाने बैठ गए। अभी वे पहला कौर उठाए ही थे कि उन्हें अपनी बाँह पर एक च्योंटा दिखाई दिया। वे भोजन छोड़कर उठ गए और च्योंटे को उसके घर (कुएँ के पास) छोड़ने चल पड़े। उन्होंने पत्नी से कहा कि इस बेघर को उसके घर छोड़कर भोजन करूंगा। उनके इस कथन में जीवों के प्रति संवेदनशीलता और दयालुता का भाव छिपा है।

भाषा अध्ययन प्रश्न (पृष्ठ संख्या 115-116)

प्रश्न 1 उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित वाक्यों में कारक चिह्नों को पहचानकर रेखांकित कीजिए और उनके नाम रिक्त स्थानों में लिखिए; जैसे-


प्रश्न 2 नीचे दिए गए शब्दों के बहुवचन रूप लिखिए-

चींटी, घोड़ा, आवाज, बिल, फ़ौज, रोटी, बिंदु, दीवार, टुकड़ा।

उत्तर-

चींटियाँ, घोड़े, आवाजें, बिलें, फ़ौजें, रोटियाँ, बिंदुओं, दीवारें, टुकड़े।

प्रश्न 3 ध्यान दीजिए नुक्ता लगाने से शब्द के अर्थ में परिवर्तन हो जाता है। पाठ में दफा’ शब्द का प्रयोग हुआ है जिसका अर्थ होता है-बार (गणना संबंधी), कानून संबंधी। यदि इस शब्द में नुक्ता लगा दिया जाए तो शब्द बनेगा ‘दफ़ा’ जिसका अर्थ होता है-दूर करना, हटाना। यहाँ नीचे कुछ नुक्तायुक्त और नुक्तारहित शब्द दिए जा रहे हैं उन्हें ध्यान से देखिए और अर्थगत अंतर को समझिए।

सजा – सज़ा

नाज – नाज़

जरा – ज़रा

तेज – तेज

निम्नलिखित वाक्यों में उचित शब्द भरकर वाक्य पूरे कीजिए-

a.   आजकल ……….. बहुत खराब है। (जमाना/जमाना)

b.   पूरे कमरे को ………… दो। (सजा/सजा)

c.   ………… चीनी तो देना। (जरा/जरा)

d.   माँ दही ………. भूल गई। (जमाना/जमाना)

e.   दोषी को ……….. दी गई। (सजा/सज़ा)

f.    महात्मा के चेहरे पर …………. था। (तेज/तेज़)

उत्तर-

a.   जमाना

b.   सजा

c.   जरा

d.   जमाना

e.   सज़ा

f.    तेज

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  • अब कहाँ दूसरों के दुःख से दुखी होने वाले

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