Sana Sana Hath Jodi Question Answer: NCERT Class 10 Hindi

Sana Sana Hath Jodi Question Answer: NCERT Class 10 Hindi
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When Class 10 students open their Hindi Kritika textbook to Chapter 2, they find themselves immersed in the thoughtful poem Sana Sana Hath Jodi. This poem paints a vivid picture of unity and the strength found in coming together, just as the lines Sana Sana Hath Jodi suggest. The unity that can move mountains is beautifully encapsulated in this poem, making it a significant part of the Class 10 Hindi curriculum.

The Sana Sana Hath Jodi summary encapsulates the poem’s essence, teaching students about the power of togetherness. It is a message that resonates with young minds, reminding them that when hands join, no task is too daunting. The Sana Sana Hath Jodi prashn uttar further delves into the meaning behind the poem, challenging students to think critically about the deeper messages conveyed through the verses.

Class 10 Hindi Kritika chapter 2 not only offers literary beauty but also life lessons that extend beyond the classroom. The Sana Sana Hath Jodi Class 10 question answer is a tool for educators and students alike to discuss and reflect upon the values of cooperation and collaboration. These discussions help in understanding the poem’s context and its relevance to the students' own lives.

Exploring the Sana Sana Hath Jodi question answer Class 10 becomes more than just homework; it becomes a guide to appreciating literature and its impact on life. As part of the Hindi Kritika course, the questions and answers associated with Sana Sana Hath Jodi prepare students not just for their exams but for life's greater challenges.

Therefore, the poem Sana Sana Hath Jodi in Class 10 chapter 2 Kritika is more than just a chapter to be read; it is a chapter to be experienced, with each line urging students to understand the strength in unity and the beauty of shared goals.

अध्याय-3: साना-साना हाथ जोड़ी

sana sana hath jodi summary

यह पाठ मधु कांकरिया द्वारा लिखा एक यात्रा वृत्तांत है जिसमें लेखिका ने सिक्किम की राजधानी गैंगटॉक और उसके आगे हिमालय की यात्रा का वर्णन किया है जो शहरों की भागमभाग भरी ज़िं दगी से दूर है| लेखिका गैंगटॉक को मेहनती बादशाहों का शहर बताती हैं क्योंकि वहाँ के सभी लोग बड़े ही मेहनती हैं। वहाँ तारों से भरे आसमान में लेखिका को सम्मोहन महसूस होता है जिसमें वह खो जाती हैं। वह नेपाली युवती द्वारा बताई गई प्रार्थना ‘मेरा सारा जीवन अच्छाइयों को समर्पित हो’ को गाती हैं|

अगले दिन मौसम साफ न होने के कारण लेखिका कंचनजंघा की चोटी तो नहीं देख सकी, परंतु ढेरों खिले फूल देखकर खुश हो जाती हैं। वह उसी दिन गैंगटाॅक से 149 किलोमीटर दूर यूमथांग देखने अपनी सहयात्री मणि और गाइड जितेन नार्गे के साथ रवाना होती हैं। गंगटोक से यूमथांग को निकलते ही लेखिका को एक कतार में लगी सफेद-सफेद बौद्ध पताकाएँ दिखाई देती हैं जो ध्वज की तरह फहरा रही थीं। ये शान्ति और अहिंसा की प्रतीक थीं और उन पताकाओं पर मंत्र लिखे हुए थे। लेखिका के गाइड ने उन्हें बताया कि जब किसी बौद्ध मतावलम्बी की मृत्यु होती है तो उसकी आत्मा की शांति के लिए शहर से दूर किसी भी पवित्र स्थान पर एक सौ आठ श्वेत पताकाएँ फहरा दी जाती हैं। इन्हें उतारा नहीं जाता है, ये खुद नष्ट हो जाती हैं। कई बार नए शुभ कार्य की शुरुआत में भी रंगीन पताकाएँ फहरा दी जाती हैं। जितेन ने बताया कि कवी-लोंग स्टॉक नामक स्थान पर 'गाइड' फ़िल्म की शूटिंग हुई थी। आगे चलकर मधु जी को एक कुटिया के भीतर घूमता हुआ चक्र दिखाई दिया जिसे धर्म चक्र या प्रेयर व्हील कहा जाता है। नार्गे ने बताया कि इसे घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं। जैसे-जैसे वे लोग ऊँचाई की ओर बढ़ने लगे, वैसे-वैसे बाजार, लोग और बस्तियाँ आँखों से ओझल होने लगी। घाटियों में देखने पर सबकुछ धुंधला दिखाई दे रहा था। उन्हें हिमालय पल-पल परिवर्तित होते महसूस होता है| वह विशाल लगने लगता है|

'सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल' पर जीप रुकती है। सभी लोग वहाँ की सुंदरता को कैमरे में कैद करने लग जाते हैं| झरने का पानी में लेखिका को ऐसा लग रहा था जैसे वह उनके अंदर की सारी बुराईयाँ और दुष्टता को भाकर ले जा रहा हो| रास्ते में प्राकृतिक दृश्य पलपल अपना रंग ऐसे बदल रहे थे जैसे कोई जादू की छड़ी घुमाकर सबकुछ बदल रहा था। थोड़ी देर के लिए जीप 'थिंक ग्रीन' लिखे शब्दों के पास रुकी। वहाँ सभी कुछ एक साथ सामने था। लगातार बहते झरने थे, नीचे पूरे वेग से बह रही तिस्ता नदी थी, सामने धुंध थी, ऊपर आसमान में बादल थे और धीरेधीरे हवा चल रही थी, जो आस-पास के वातावरण में खिले फूलों की हँसी चारों ओर बिखेर रही थी। कुछ औरतों की पीठ पर बँधी टोकरियों में बच्चे थे। इतने सुंदर वातावरण में भूख, गरीबी और मौत के निर्मम दृश्य ने लेखिका को सहमा दिया। एक कर्मचारी ने बताया कि ये पहाडिनें पहाड़ी रास्ते को चौड़ा बना रही हैं। कई बार काम करते समय किसी-न-किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है क्योंकि जब पहाड़ों को डायनामाइट से उड़ाया जाता है तो उनके टुकड़े इधर-उधर गिरते हैं। यदि उस समय सावधानी न बरती जाए, तो जानलेवा हादसा घट जाता है। लेखिका को लगता है कि सभी जगह आम जीवन की कहानी एक-सी है।

आगे चलने पर रास्ते में बहुत सारे पहाड़ी स्कूली बच्चे मिलते हैं। जितेन बताता है कि ये बच्चे तीन-साढ़े तीन किलोमीटर की पहाड़ी चढ़ाई चढ़कर स्कूल जाते हैं। ये बच्चे स्कूल से लौटकर अपनी माँ के साथ काम करते हैं। यहाँ का जीवन बहुत कठोर है। जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ती जा रही थी, वैसे-वैसे खतरे भी बढ़ते जा रहे थे। रास्ता तंग होता जा रहा था। सरकार की 'गाड़ी धीरे चलाएँ' की चेतावनियों के बोर्ड लगे थे। शाम के समय जीप चाय बागानों में से गुजर रही थी। बागानों में कुछ युवतियाँ सिक्किमी परिधान पहने चाय की पत्तियाँ तोड़ रही थीं। चारों ओर इंद्रधनुषी रंग छटा बिखेर रहे थे। यूमथांग पहुंचने से पहले वे लोग लायुंग रुके। लायुंग में लकड़ी से बने छोटे-छोटे घर थे। लेखिका सफ़र की थकान उतारने के लिए तिस्ता नदी के किनारे फैले पत्थरों पर बैठ गई। रात होने पर जितेन के साथ अन्य साथियों ने नाच-गाना शुरू कर दिया था। लेखिका की सहयात्री मणि ने बहुत सुंदर नृत्य किया। लायुंग में अधिकतर लोगों की जीविका का साधन पहाड़ी आलू, धान की खेती और शराब था। लेखिका को वहाँ बर्फ़ देखने की इच्छा थी परंतु वहाँ बर्फ कहीं भी नहीं थी|

एक स्थानीय युवक के अनुसार प्रदूषण के कारण यहाँ स्नोफॉल कम हो गया था। 'कटाओ' में बर्फ़ देखने को मिल सकती है। कटाओ' को भारत का स्विट्जरलैंड कहा जाता है। मणि जिसने स्विट्ज़रलैंड घुमा था ने कहा कि यह स्विट्जरलैंड से भी सुंदर है। कटाओ को अभी तक टूरिस्ट स्पॉट नहीं बनाया गया था, इसलिए यह अब तक अपने प्राकृतिक स्वरूप में था। लायुंग से कटाओ का सफ़र दो घंटे का था। कटाओ का रास्ता खतरनाक था। जितेन अंदाज से गाड़ी चला रहा था। चारों ओर बर्फ से भरे पहाड़ थे। कटाओ पहुँचने पर हल्की -हल्की बर्फ पड़ने लगी थी। सभी सहयात्री वहाँ के वातावरण में फोटो खिंचवा रहे थे। लेखिका वहाँ के वातावरण को अपनी साँसों में समा लेना चाहती थी। उसे लग रहा था कि यहाँ के वातावरण ने ही ऋषियोंमुनियों को वेदों की रचना करने की प्रेरणा दी होगी। ऐसे असीम सौंदर्य को यदि कोई अपराधी भी देख ले, तो वह भी आध्यात्मिक हो जाएगा। मणि के मन में भी दार्शनिकता उभरने लगी थी। वे कहती हैं कि - प्रकृति अपने ढंग से सर्दियों में हमारे लिए पानी इकट्ठा करती है और गर्मियों में ये बर्फ शिलाएँ पिघलकर जलधारा बनकर हम लोगों की प्यास को शांत करती हैं। प्रकृति का यह जल संचय अद्भुत है। इस प्रकार नदियों और हिमशिखरों का हम पर ऋण है।

थोड़ा आगे जाने पर फ़ौजी छावनियाँ दिखाई दी चूँकि यह बॉर्डर एरिया था और थोड़ी ही दूर पर चीन की सीमा थी। लेखिका फ़ौजियों को देखकर उदास हो गई। वैशाख के महीने में भी वहाँ बहुत ठंड थी। वे लोग पौष और माघ की ठंड में किस तरह रहते होंगे? वहाँ जाने का रास्ता भी बहुत खतरनाक था। कटाओं से यूमथांग की ओर जाते हुए प्रियुता और रूडोडेंड्रो ने फूलों की घाटी को भी देखा। यूमथांग कटाओ जैसा सुंदर नहीं था। जितेन ने रास्ते में बताया कि यहाँ पर बंदर का माँस भी खाया जाता है। बंदर का माँस खाने से कैंसर नहीं होता। यूमथांग वापस आकर उन लोगों को वहाँ सब फीका-फीका लग रहा था। पहले सिक्किम स्वतंत्र राज्य था। अब वह भारत का एक हिस्सा बन गया है। इससे वहाँ के लोग बहुत खुश हैं।

मणि ने बताया कि पहाड़ी कुत्ते केवल चाँदनी रातों में भौंकते हैं। यह सुनकर लेखिका हैरान रह गई। उसे लगा कि पहाड़ी कुत्तों पर भी ज्वारभाटे की तरह पूर्णिमा की चाँदनी का प्रभाव पड़ता है। गुरुनानक के पदचिह्नों वाला एक ऐसा पत्थर दिखाया, जहाँ कभी उनकी थाली से चावल छिटककर बाहर गिर गए थे। खेदुम नाम का एक किलोमीटर का ऐसा क्षेत्र भी दिखाया, जहाँ देवी-देवताओं का निवास माना जाता है। नार्गे ने पहाड़ियों के पहाड़ों, नदियों, झरनों और वादियों के प्रति पूज्य भाव की भी जानकारी दी। भारतीय आर्मी के कप्तान शेखर दत्ता के सुझाव पर गैंगटाक के पर्यटक स्थल बनने और नए रास्तों के साथ नए स्थानों को खोजने के प्रयासों के बारे में भी बताया|

NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 10 HINDI KRITIKA CHAPTER 2

sana sana hath jodi question Answer

प्रश्न 1 झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को किस तरह सम्मोहित कर रहा था?

उत्तर- रात्रि के समय आसमान ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सारे तारे नीचे धरती पर टिमटिमा रहे हों। दूर ढलान लेती तराई पर सितारों के गुच्छे रोशनियों की एक झालर-सी बना रहे थे। रात के अन्धकार में सितारों से झिलमिलाता गंतोक लेखिका को जादुई एहसास करा रहा था। उसे यह जादू ऐसा सम्मोहित कर रहा था कि मानो उसका अस्तित्व स्थगित सा हो गया हो, सब कुछ अर्थहीन सा था। उसकी चेतना शून्यता को प्राप्त कर रही थी। वह सुख की अतींद्रियता में डूबी हुई उस जादुई उजाले में नहा रही थी जो उसे आत्मिक सुख प्रदान कर रही थी।

प्रश्न 2 गंतोक को 'मेहनतकश बादशाहों का शहर' क्यों कहा गया?

उत्तर- मेहनतकश' का अर्थ है- कड़ी मेहनत करने वाले। 'बादशाह' का अर्थ है- मन की मर्जी के मालिक। गंतोक एक पर्वतीय स्थल है। पर्वतीय क्षेत्र होने के नाते यहाँ स्थितियाँ बड़ी कठिन हैं। अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए लोगों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। यहाँ के लोग इस मेहनत से घबराते नहीं और ऐसी कठिनाइयों के बीच भी मस्त रहते हैं। इसलिए गंतोक को 'मेहनतकश बादशाहों का शहर' कहा गया है।

प्रश्न 3 कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना किन अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है?

उत्तर- सफ़ेद बौद्ध पताकाएँ शांति व अहिंसा की प्रतीक हैं, इन पर मंत्र लिखे होते हैं। यदि किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है तो उसकी आत्मा की शांति के लिए 108 श्वेत पताकाएँ फहराई जाती हैं। कई बार किसी नए कार्य के अवसर पर रंगीन पताकाएँ फहराई जाती हैं। इसलिए ये पताकाएँ, शोक व नए कार्य के शुभांरभ की ओर संकेत करते हैं।

प्रश्न 4 जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जनजीवन के बारे में क्या महत्वपूर्ण जानकारियाँ दीं, लिखिए।

उत्तर-

1.   नार्गे के अनुसार सिक्किम के रास्तों में हिमालय की गहनतम घाटियाँ और फूलों से लदी वादियाँ मिलेंगी।

2.   घाटियों का सौंदर्य देखते ही बनता हैं। नार्गे ने बताया कि वहाँ की खूबसूरती की तुलना स्विट्ज़रलैंड की खूबसूरती से की जा सकती है।

3.   नार्गे के अनुसार पहाड़ी रास्तों पर फहराई गई पताकाएँ किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु व नए कार्य की शुरूआत का प्रतीक हैं। इनका रंग श्वेत व रंग-बिरंगा होता है।

4.   सिक्किम में घूमते चक्र भारत के अन्य स्थानों व्याप्त आस्था, विश्वास, अंधविश्वास, पाप-पुण्य की अवधारणाओं की तरह ही हैं।

5.   वहाँ की युवतियाँ बोकु नाम का सिक्किम का परिधान डालती हैं। जिसमें उनके सौंदर्य की छटा निराली होती है। वहाँ के घर, घाटियों में ताश के पत्तों की तरह बिखरे होते हैं।

6.   वहाँ के लोग मेहनतकश होते हैं, उनका जीवन काफी मुश्किलों से भरा है।

7.   स्त्रियाँ व बच्चे सब काम करते हैं। स्त्रियाँ स्वेटर बुनती हैं, घर सँभालती हैं, खेती करती हैं, पत्थर तोड़-तोड़ कर सड़कें बनाती हैं। चाय की पत्तियाँ चुनने बाग़ में जाती हैं। बच्चे पानी भरते हैं और जानवर चराते हैं।

8.   बच्चों को बहुत ऊँचाई पर पढ़ाई के लिए जाना पड़ता है क्योंकि दूर-दूर तक कोई स्कूल नहीं है। इन सब के विषय में नार्गे लेखिका को बताता चला गया।

प्रश्न 5 लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका को पूरे भारत की आत्मा एक-सी क्यों दिखाई दी?

उत्तर- लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका ने उसके बारे में पूछा तो पता चला कि यह धर्म-चक्र है। इसे घुमाने पर सारे पाप धुल जाते हैं। जितेन की यह बात सुनकर लेखिका को ध्यान आया कि पूरे भारत की आत्मा एक ही है। मैदानी क्षेत्रों में गंगा के विषय में भी ऐसी ही धारणा है। उसे लगा कि पूरे भारत की आत्मा एक-सी है। सारी वैज्ञानिक प्रगति के बावजूद उनकी आस्थाएँ, विश्वास, अंधविश्वास और पाप-पुण्य की अवधारणाएँ एक-सी हैं।

प्रश्न 6 जितेन नार्गे की गाइड की भूमिका के बारे में विचार करते हुए लिखिए कि एक कुशल गाइड में क्या गुण होते हैं?

उत्तर- नार्गे एक कुशल गाइड था। वह अपने पेशे के प्रति पूरा समर्पित था। उसे सिक्किम के हर कोने के विषय में भरपूर जानकारी प्राप्त थी इसलिए वह एक अच्छा गाइड था। एक कुशल गाइड में निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है-

1.   एक गाइड अपने देश व इलाके के कोने-कोने से भली भाँति परिचित होता है, अर्थात् उसे सम्पूर्ण जानकारी होनी चाहिए।

2.   उसे वहाँ की भौगोलिक स्थिति, जलवायु व इतिहास की सम्पूर्ण जानकारी होनी चाहिए।

3.   एक कुशल गाइड को चाहिए कि वो अपने भ्रमणकर्ता के हर प्रश्नों के उत्तर देने में सक्षम हो।

4.   एक कुशल गाइड को अपनी विश्वसनीयता का विश्वास अपने भ्रमणकर्ता को दिलाना आवश्यक है। तभी वह एक आत्मीय रिश्ता कायम कर अपने कार्य को कर सकता है।

5.   गाइड को कुशल व बुद्धिमान व्यक्ति होना आवश्यक है। ताकि समय पड़ने पर वह विषम परिस्थितियों का सामना अपनी कुशलता व बुद्धिमानी से कर सके व अपने भ्रमणकर्ता की सुरक्षा कर सके।

6.   एक कुशल गाइड की वाणी को प्रभावशाली होना आवश्यक है इससे पूरी यात्रा प्रभावशाली बनती है और भ्रमणकर्ता की यात्रा में रूचि भी बनी रहती है।

7.   वहाँ के जन-जीवन की दिनचर्या से अवगत कराए।

8.   रास्ते में आए प्रत्येक दृश्य से पर्यटकों को अवगत कराए।

9.   वह यात्रियों को रास्तें में आने वाले दर्शनीय स्थलों की जानकारी देता रहे।

प्रश्न 7 इस यात्रा-वृत्तांत में लेखिका ने हिमालय के जिन-जिन रूपों का चित्र खींचा है, उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर- इस यात्रा वृतांत में लेखिका ने हिमालय के पल-पल परिवर्तित होते रुप को देखा। ज्यों-ज्यों वह ऊँचाई पर चढ़ती गई। हिमालय विशाल से विशालतर होता चला गया, हिमालय कहीं चटक हरे रंग का मोटा कालीन ओढ़े हुए, तो कहीं हल्का पीलापन लिए हुए प्रतीत हुआ। चारों तरफ़ हिमालय के गहनतम वादियाँ और फूलों से लदी घाटियाँ थी। कहीं पर्वत प्लास्टर उखड़ी दीवार की तरह पथरीला दिखाई दिया और देखते-ही-देखते सब कुछ समाप्त हो गया मानो किसी ने जादू की छडी घूमा दी हो। कभी बादलों की मोटी चादर में, सब कुछ बादलमय दिखाई देता तो कभी कुछ और। कटाओ से आगे बढ़ने पर पूरी तरह बर्फ से ढके पहाड़ दिख रहे थे। चारों तरफ दूध की धार की तरह दिखने वाले जलप्रपात थे तो वहीं नीचे चाँदी की तरह कौंध मारती तिस्ता नदी बह रही थी, जिसने लेखिका के हृदय को आनन्द से भर दिया। स्वयं को इस पवित्र वातावरण में पाकर वह भावविभोर हो गई जिसने उनके ह्रदय को काव्यमय बना दिया।

प्रश्न 8 प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को कैसी अनुभूति होती है?

उत्तर- हिमालय का स्वरूप पल-पल बदलता है। प्रकृति इतनी मोहक है कि लेखिका किसी बुत-सी 'माया' और 'छाया' के खेल को देखती रह जाती है। उसे लगता है कि प्रकृति उसे अपना परिचय दे रही है। वह उसे और सयानी (बुद्धिमान) बनाने के लिए अपने रहस्यों का उद्घाटन कर रही है। प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर उसे अनेक अनुभूतियाँ होती हैं। उसे लगता है जीवन की सार्थकता झरनों और फूलों की भाँति स्वयं को दे देने में अर्थात् परोपकार में ही है। झरनों की भाँति निरंतर चलायमान रहना और फूलों की भाँति अपनी महक लुटाना ही जीवन का सच्चा स्वरूप है।

प्रश्न 9 प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को कौन-कौन से दृश्य झकझोर गए?

उत्तर- लेखिका हिमालय यात्रा के दौरान प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनन्द में डूबी हुई थी परन्तु जीवन के कुछ सत्य जो वह इस आनन्द में भूल चूकी थी, अकस्मात् वहाँ के जनजीवन ने उसे झकझोर दिया। वहाँ कुछ पहाड़ी औरतें जो मार्ग बनाने के लिए पत्थरों पर बैठकर पत्थर तोड़ रही थीं। वे पत्थर तोड़कर सँकरे रास्तों को चौड़ा कर रही थीं। उनके कोमल हाथों में कुदाल व हथौड़े से ठाठे (निशान) पड़ गए थे। कईयों की पीठ पर बच्चे भी बँधे हुए थे। इनको देखकर लेखिका को बहुत दुख हुआ। वह सोचने लगी की यह पहाड़ी औरतें अपने जान की परवाह न करते हुए सैलानियों के भ्रमण तथा मनोरंजन के लिए हिमालय की इन दुर्गम घाटियों में मार्ग बनाने का कार्य कर रही है। सात आठ साल के बच्चों को रोज़ तीन-साढ़े तीन किलोमीटर का सफ़र तय कर स्कूल पढ़ने जाना पढ़ता है। यह देखकर लेखिका मन में सोचने लगी कि यहाँ के अलौकिक सौंदर्य के बीच भूख, मौत, दैन्य और जिजीविषा के बीच जंग जारी है।

प्रश्न 10 सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में किन-किन लोगों का योगदान होता है, उल्लेख करें।

उत्तर- सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव कराने में सबसे बड़ा हाथ एक कुशल गाइड का होता है। जो अपनी जानकारी व अनुभव से सैलानियों को अवगत कराता है। कुशल गाइड इस बात का ध्यान रखता है कि भ्रमणकर्ता की रूचि पूरी यात्रा में बनी रहे ताकि भ्रमणकर्ता के भ्रमण करने का प्रयोजन सफल हो। अपने मित्रों व सहयात्रियों का साथ पाकर यात्रा और भी रोमांचकारी व आनन्दमयी बन जाती है। वहाँ के स्थानीय निवासियों व जन जीवन का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है। उनके द्वारा ही इस छटा के सौंदर्य को बल मिलता है क्योंकि यदि ये ना हों तो वह स्थान नीरस व बेजान लगने लगता है तथा सरकारी लोग जो व्यवस्था करने में संलग्न होते हैं उनका भी महत्त्वपूर्ण योगदान होता हैं।

प्रश्न 11 ''कितनी कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती हैं।'' इस कथन के आधार पर स्पष्ट करें कि आम जनता की देश की आर्थिक प्रगति में क्या भूमिका है?

उत्तर- लेखिका ने यह कथन उन पहाड़ी श्रमिक महिलाओं के विषय में कहा है, जो पीठ पर बँधी डोको (बड़ी टोकरी) में अपने बच्चों को सँभालते हुए कठोर श्रम करती हैं। ऐसा ही दृश्य वह पलामु और गुमला के जंगलों में भी देख चुकी थी, जहाँ बच्चे को पीठ पर बाँधे पत्तों (तेंदु के) की तलाश में आदिवासी औरतें वन-वन डोलती फिरती हैं। उसे लगता है कि ये श्रम-सुंदरियाँ 'वैस्ट एट रिपेईंग' हैं; अर्थात् ये कितना कम लेकर समाज को कितना अधिक लौटा देती हैं। वास्तव में यह एक सत्य है कि हमारे ग्रामीण समाज में महिलाएँ बहुत कम लेकर समाज को बहुत अधिक लौटाती हैं। वे घर-बार भी सँभालती हैं, बच्चों की देखभाल भी करती हैं और श्रम करके धनोपार्जन भी करती हैं। यह बात हमारे देश की आम जनता पर भी लागू होती है। जो श्रमिक कठोर परिश्रम करके सड़कों, पुलों, रेलवे लाइनों का निर्माण करते हैं या खेतों में कड़ी मेहनत करके अन्न उपजाते हैं; उन्हें बदले में बहुत कम मज़दूरी या लाभ मिलता है। लेकिन उनका श्रम देश की प्रगति में बड़ा सहायक होता है। हमारे देश की आम जनता बहुत कम पाकर भी देश की प्रगति में अहम भूमिका निभाती है।

प्रश्न 12 आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति के साथ किस तरह का खिलवाड़ किया जा रहा है। इसे रोकने में आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए।

उत्तर- आज की पीढ़ी के द्वारा प्रकृति को प्रदूषित किया जा रहा है। प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने के क्रम में आज की पीढ़ी पहाड़ी स्थलों को अपना विहार स्थान बना रही है। इससे वहाँ गंदगी बढ़ रही है। पर्वत अपनी स्वभाविक सुंदरता खो रहे है। कारखानों से निकलने वाले जल में खतरनाक कैमिकल व रसायन होते हैं जिसे नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है। साथ में घरों से निकला दूषित जल भी नदियों में ही जाता है। जिसके कारण हमारी नदियाँ लगातार दूषित हो रही हैं। वनों की अन्धांधुध कटाई से मृदा का कटाव होने लगा है जो बाढ़ को आमंत्रित कर रहा है। दूसरे अधिक पेड़ों की कटाई ने वातावरण में कार्बनडाइ आक्साइड की अधिकता बढ़ा दी है जिससे वायु प्रदूषित होती जा रही है।

हमें निम्नलिखित भूमिका निभानी चाहिए-

1.   हम सबको मिलकर अधिक से अधिक पेड़ों को लगाना चाहिए।

2.   हमें नदियों की निर्मलता व स्वच्छता को बनाए रखने के लिए कारखानों से निकलने वाले प्रदूर्षित जल को नदियों में डालने से रोकना चाहिए।

3.   नदियों की स्वच्छता बनाए रखने के लिए, लोगों की जागरूकता के लिए अनेक कार्यक्रमों का आयोजन होना चाहिए।

4.   पेड़ों को काटने से रोकने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए ताकि वातावरण की शुद्धता बनी रहे।

प्रश्न 13 प्रदूषण के कारण स्नोफॉल में कमी का जिक्र किया गया है। प्रदूषण के और कौन-कौन से दुष्परिणाम सामने आये हैं, लिखें।

उत्तर- आज की पीढ़ी के द्वारा प्रकृति को प्रदूषित किया जा रहा है। प्रदूषण का मौसम पर असर साफ दिखाई देने लगा है। प्रदूषण के चलते जलवायु पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है। कहीं पर बारिश अतिरिक्त हो जाती है तो किसी स्थान पर अप्रत्याशित रूप से सूखा पड़ रहा है। गर्मी के मौसम में गर्मी की अधिकता देखते बनती है। कई बार तो पारा अपने सारे रिकार्ड को तोड़ चुका होता है। सर्दियों के समय में या तो कम सर्दी पड़ती है या कभी सर्दी का पता ही नहीं चलता। ये सब प्रदूषण के कारण ही हो रहा है। प्रदूषण के कारण वायुमण्डल में कार्बनडाईआक्साइड की अधिकता बढ़ गई है जिसके कारण वायु प्रदूषित होती जा रही है। इससे साँस की अनेक बीमारियाँ उत्पन्न होने लगी है। प्रदूषण के कारण पहाड़ी स्थानों का तापमान भी बढ़ गया है, जिससे स्नोफॉल कम हो गया। ध्वनि प्रदूषण से शांति भंग होती है। ध्वनि-प्रदूषण मानसिक अस्थिरता, बहरेपन तथा अनिंद्रा जैसे रोगों का कारण बन रहा है। जलप्रदूषण के कारण स्वच्छ जल पीने को नहीं मिल पा रहा है और पेट सम्बन्धी अनेक बीमारियाँ उत्पन्न हो रही हैं।

प्रश्न 14 'कटाओ' पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। इस कथन के पक्ष में अपनी राय व्यक्त कीजिए?

उत्तर- कटाओ सिक्किम की एक खूबसूरत किंतु अनजान-सी जगह है, जहाँ प्रकृति अपने पूरे वैभव के साथ दृष्टिगोचर होती है। यहाँ पर लेखिका को बर्फ का आनंद लेने के लिए घुटनों तक के लंबे बूटों की आवश्यकता अनुभव हुई तो उसने देखा कि वहाँ पर झांग की तरह ऐसी चीजें किराए पर मुहैया करवाने वाली दुकानों की कतारें तो क्या, एक दुकान भी न थी।

प्रश्न 15 प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है?

उत्तर- प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था नायाब ढंग से की है। प्रकृति सर्दियों में बर्फ के रूप में जल संग्रह कर लेती है और गर्मियों में पानी के लिए जब त्राहि-त्राहि मचती है, तो उस समय यही बर्फ शिलाएँ पिघलकर जलधारा बन के नदियों को भर देती है। नदियों के रूप में बहती यह जलधारा अपने किनारे बसे नगर तथा गावों में जल-संसाधन के रूप में तथा नहरों के द्वारा एक विस्तृत क्षेत्र में सिंचाई करती हैं और अंत में सागर में जाकर मिल जाती हैं। सागर से फिर से वाष्प के रूप में जल-चक्र की शुरुआत होती है। सचमुच प्रकृति ने जल संचय की कितनी अद्भुत व्यवस्था की है।

प्रश्न 16 देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी किस तरह की कठिनाइयों से जूझते हैं? उनके प्रति हमारा क्या उत्तरदायित्व होना चाहिए?

उत्तर- साना साना हाथ जोडि' पाठ में देश की सीमा पर तैनात फौजियों की चर्चा की गई है। वस्तुत: सैनिक अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह ईमानदारी, समर्पण तथा अनुशासन से करते है। सैनिक देश की सीमाओं की रक्षा के लिए कटिबध्द रहते है। देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी प्रकृति के प्रकोप को सहन करते हैं। हमारे सैनिकों (फौजी) भाईयों को उन बर्फ से भरी ठंड में ठिठुरना पड़ता है। जहाँ पर तापमान शून्य से भी नीचे गिर जाता है। वहाँ नसों में खून को जमा देने वाली ठंड होती है। वह वहाँ सीमा की रक्षा के लिए तैनात रहते हैं और हम आराम से अपने घरों पर बैठे रहते हैं। ये जवान हर पल कठिनाइयों से जूझते हैं और अपनी जान हथेली पर रखकर जीते हैं। हमें सदा उनकी सलामती की दुआ करनी चाहिए। उनके परिवारवालों के साथ हमेशा सहानुभूति, प्यार व सम्मान के साथ पेश आना चाहिए।

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