एक कहानी यह भी NCERT Solutions For Class 10 Hindi Chapter 10

एक कहानी यह भी NCERT Solutions For Class 10 Hindi Chapter 10
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Dive into the depths of human emotions and life's complexities with the story titled Ek Kahani Yeh Bhi. This narrative, which forms a crucial part of the Class 10 Hindi syllabus, unfolds layers of human experiences, making it a significant chapter for young learners. The story is not just a mere sequence of events, but a profound reflection of life’s varied shades, inviting students to ponder and reflect on the world around them.

For those keen on delving into the depths of this story, finding the right set of question answers is crucial. These are not just tools for exam preparation but stepping stones to developing a deeper understanding of the literary piece. The story comes alive when students engage with thought-provoking questions, seeking answers that reinforce their comprehension and appreciation of the narrative.

Teachers and parents looking for resources to help students with Ek Kahani Yeh Bhi will find that clear and well-explained question answers are key to unlocking the themes and messages embedded in the story. These resources are tailored to aid students in their learning journey, ensuring that they grasp the essence of the chapter thoroughly.

The Class 10 Hindi Chapter 10 is more than just an academic requirement; it's a treasure trove of lessons and insights. As students prepare for their exams, Ek Kahani Yeh Bhi question answers serve as a guide, enhancing their analytical and critical thinking skills. With the right notes and a comprehensive understanding of the chapter, students are well-equipped to tackle their Hindi exams with confidence.

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अध्याय-14: एक कहानी यह भी

सार

प्रस्तुत पाठ में लेखिका ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण तथ्यों को उभारा है। लेखिका का जन्म मध्य प्रदेश के भानपुरा गाँव हुआ था परन्तु उनकी यादें अजमेर के ब्रह्मापुरी मोहल्ले के एक-दो मंजिला मकान में पिता के बिगड़ी हुई मनःस्थिति से शुरू हुई। आरम्भ में लेखिका के पिता इंदौर में रहते थे, वहाँ संपन्न तथा प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। काँग्रेस से जुड़े होने के साथ वे समाज सेवा से भी जुड़े थे परन्तु किसी के द्वारा धोखा दिए जाने पर वे आर्थिक मुसीबत में फँस गए और अजमेर आ गए। अपने जमाने के अलग तरह के अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोष को पूरा करने बाद भी जब उन्हें धन नही मिला तो सकरात्मकता घटती चली गयी। वे बेहद क्रोधी, जिद्दी और शक्की हो गए, जब तब वे अपना गुस्सा लेखिका के बिन पढ़ी माँ पर उतारने के साथ-साथ अपने बच्चों पर भी उतारने लगे

पांच भाई-बहनों में लेखिका सबसे छोटी थीं। काम उम्र में उनकी बड़ी बहन की शादी होने के कारण लेखिका के पास ज्यादा उनकी यादें नही थीं। लेखिका काली थीं तथा उनकी बड़ी बहन सुशीला के गोरी होने के कारण पिता हमेशा उनकी तुलना लेखिका से किया करते तथा उन्हें नीचा दिखाते। इस हीनता की भावना ने उनमें विशेष बनने की लगन उत्पन्न की परन्तु लेखकीय उपलब्धियाँ मिलने पर भी वह इससे उबार नही पाई। बड़ी बहन के विवाह तथा भाइयों के पढ़ने के लिए बाहर जाने पर पिता का ध्यान लेखिका पर केंद्रित हुआ। पिता ने उन्हें रसोई में समय ख़राब न कर देश दुनिया का हाल जानने के लिए प्रेरित किया। घर में जब कभी विभिन्न राजनितिक पार्टयों के जमावड़े होते और बहस होती तो लेखिका के पिता उन्हें उस बहस में  बैठाते जिससे उनके अंदर देशभक्ति की भावना जगी।

सन 1945 में सावित्री गर्ल्स कॉलेज के प्रथम वर्ष में हिंदी प्राध्यापिका शीला अग्रवाल ने लेखिका में न केवल हिंदी साहित्य के प्रति रूचि जगाई बल्कि साहित्य के सच को जीवन में उतारने के लिए प्रेरित भी किया। सन 1946-1947 के दिनों में लेखिका ने घर से बाहर निकलकर देशसेवा में सक्रीय भूमिका निभायी। हड़तालों, जुलूसों व भाषणों में भाग लेने से छात्राएँ भी प्रभावित होकर कॉलेजों का बहिष्कार करने लगीं। प्रिंसिपल ने कॉलेज से निकाल जाने से पहले पिता को बुलाकर शिकायत की तो वे क्रोधित होने के बजाय लेखिका के नेतृत्व शक्ति को देखकर गद्गद हो गए। एक बार जब पिता ने अजमेर के वयस्त चौराहे पर बेटी के भाषण की बात अपने पिछड़े मित्र से सुनी जिसने उन्हें मान-मर्यादा का लिहाज करने को कहा तो उनके पिता गुस्सा हो गए परन्तु रात को जब यही बात उनके एक और अभिन्न मित्र ने लेखिका की बड़ाई करते हुए कहा जिससे लेखिका के पिता ने गौरवान्वित महसूस किया।

सन 1947 के मई महीने में कॉलेज ने लेखिका समेत दो-तीन छात्राओं का प्रवेश थर्ड ईयर में हुड़दंग की कारण निषिद्ध कर दिया परन्तु लेखिका और उनके मित्रों ने बाहर भी इतना हुड़दंग मचाया की आखिर उन्हें प्रवेश लेना ही पड़ा। यह ख़ुशी लेखिका को उतना खुश न कर पायी जितना आजादी की ख़ुशी ने दी। उन्होंने इसे शताब्दी की सबसे बड़ी उपलब्धि बताया है।


 

NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 10 HINDI CHAPTER 10

प्रश्न-अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 100)

प्रश्न 1 लेखिका के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का किस रूप में प्रभाव पड़ा?

उत्तर- लेखिका के व्यक्तित्व पर दो लोगों का विशेष प्रभाव पड़ा-

1.   पिता का प्रभाव- लेखिका के व्यक्तित्व पर पिताजी का अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा, वह रंग-रूप के कारण हीन भावना से ग्रस्त थी क्योंकि गौर वर्ण के कारण बड़ी बहन सुशीला को उनके पिता ज्यादा मानते थे, इसी के परिमाण स्वरुप उनमें आत्मविश्वास की कमी हो गई थी। पिता के द्वारा ही उनमें देश प्रेम की भावना जाग्रत हुई थी। पिता के समान कभी अपनी उपलब्धियों पर विश्वास नहीं कर पाई।

2.   शिक्षिका शीला अग्रवाल का प्रभाव- शीला अग्रवाल की जोशीली बातों ने एक ओर लेखिका के खोए आत्मविश्वास को पुनः लौटाया तो दूसरी ओर देशप्रेम की अंकुरित भावना को अभिव्यक्ति का उचित माहौल प्रदान किया। जिसके फलस्वरूप लेखिका खुलकर स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने लगी। शीला अग्रवाल ने लेखिका को अच्छा साहित्य चुन कर पढ़ना सिखाया।

प्रश्न 2 इस आत्मकथ्य में लेखिका के पिता ने रसोई को 'भटियारखाना' कहकर क्यों संबोधित किया है?

उत्तर- भटियारखाने के दो अर्थ हैं-

1.   जहाँ हमेशा भट्टी जलती रहती है, अर्थात् चूल्हा चढ़ा रहता है।

2.   जहाँ बहुत शोर-गुल रहता है। भटियारे का घर। कमीने और असभ्य लोगों का जमघट। पाठ के संदर्भ में यह शब्द पहले अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। रसोईघर में हमेशा खाना-पकाना चलता रहता है। पिताजी अपने बच्चों को घर-गृहस्थी या चूल्हे-चौके तक सीमित नहीं रखना चाहते थे। वे उन्हें जागरूक नागरिक बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने रसोईघर की उपेक्षा करते हुए भटियारखाना अर्थात् प्रतिभा को नष्ट करने वाला कह दिया है।

प्रश्न 3 वह कौन-सी घटना थी जिसके बारे में सुनने पर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हो पाया और न अपने कानों पर

उत्तर- जब पहली बार लेखिका के कॉलेज से उनके पिता के पास शिकायत आई तो लेखिका बहुत डरी हुई थी। उनका अनुमान था कि उनके पिता गुस्से में उनका बुरा हाल करेंगे। लेकिन ठीक इसके उलट उनके पिता ने उन्हें शाबाशी दी। यह सुनकर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हुआ और न अपने कानों पर।

प्रश्न 4 लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर- लेखिका के अपने पिता के साथ अक्सर वैचारिक टकराहट हुआ करती थी-

1.   लेखिका के पिता यद्यपि स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी नहीं थे परन्तु वे स्त्रियों का दायरा चार दीवारी के अंदर ही सीमित रखना चाहते थे। परन्तु लेखिका खुले विचारों की महिला थी।

2.   लेखिका के पिता लड़की की शादी जल्दी करने के पक्ष में थे। लेकिन लेखिका जीवन की आकाँक्षाओं को पूर्ण करना चाहती थी।

3.   लेखिका का स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर भाषण देना उनके पिता को पसंद नहीं था।

4.   पिताजी का लेखिका की माँ के साथ अच्छा व्यवहार नहीं था। स्त्री के प्रति ऐसे व्यवहार को लेखिका अनुचित समझती थी।

5.   बचपन के दिनों में लेखिका के काले रंग रुप को लेकर उनके पिता का मन उनकी तरफ़ से उदासीन रहा करता था।

प्रश्न 5 इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आंदोलन के परिदृश्य का चित्रण करते हुए उसमें मन्नू जी की भूमिका को रेखांकित कीजिए।

उत्तर- सन् 1942 से 1947 तक का समय स्वतंत्रता-आंदोलन का समय था। इन दिनों पूरे देश में देशभक्ति का ज्वार पूरे यौवन पर था। हर नगर में हड़तालें हो रही थीं। प्रभात-फेरियाँ हो रही थीं। जलसे हो रहे थे। जुलूस निकाले जा रहे थे।

युवक-युवतियाँ सड़कों पर घूम-घूमकर नारे लगा रहे थे। सारी मर्यादाएँ टूट रही थीं। घर के बंधन, स्कूल-कॉलेज के नियम-सबकी धज्जियाँ उड़ रही थीं। लड़कियाँ भी लड़कों के बीच खुलकर सामने आ रही थीं।

ऐसे वातावरण में लेखिका मन्नू भंडारी ने अपूर्व उत्साह दिखाया। उसने पिता की इच्छा के विरुद्ध सड़कों पर घूम-घूमकर नारेबाजी वो, भाषण दिए, हड़तालें कीं, जलसे-जुलूस किए। उसके इशारे पर पूरा कॉलेज कक्षाएँ छोड़कर आंदोलन में साथ हो लेता था। हम कह सकते हैं कि वे स्वतंत्रता सेनानी थीं।

रचना और अभिव्यक्ति प्रश्न (पृष्ठ संख्या 100)

प्रश्न 1 लेखिका ने बचपन में अपने भाइयों के साथ गिल्ली डंडा तथा पतंग उड़ाने जैसे खेल भी खेले किंतु लड़की होने के कारण उनका दायरा घर की चारदीवारी तक सीमित था। क्या आज भी लड़कियों के लिए स्थितियाँ ऐसी ही हैं या बदल गई हैं, अपने परिवेश के आधार पर लिखिए?

उत्तर- अपने समय में लेखिका को खेलने तथा पढ़ने की आज़ादी तो थी, लेकिन अपने पिता द्वारा निर्धारित गाँव की सीमा तक ही, परन्तु आज स्थिति बदल गई है। आज लड़कियाँ एक शहर से दूसरे शहर शिक्षा ग्रहण करने तथा खेलने जाती हैं। ऐसा केवल भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि आज भारतीय महिलाएँ विदेशों तक, अंतरिक्ष में जाकर दुनियॉं में अपने देश का नाम रोशन कर रही हैं। परन्तु इसके साथ दूसरा पहलू यह भी है, कि आज भी हमारे देश में कुछ लोग स्त्री स्वतंत्रता के पक्ष-धर नहीं हैं।

प्रश्न 2 मनुष्य के जीवन में आस-पड़ोस का बहुत महत्व होता है। परंतु महानगरों में रहने वाले लोग प्राय: 'पड़ोस कल्चर' से वंचित रह जाते हैं। इस बारे में अपने विचार लिखिए।

उत्तर- पास-पड़ोस मनुष्य की वास्तविक शक्ति होती है। आज घर के स्त्री-पुरुष दोनों ही कामकाज के सिलसिले में ज्यादा से ज्यादा समय घर से बाहर रहते हैं इसलिए लोगों के पास समय का अभाव होता है। मनुष्य के सामाजिक सम्बन्धों का क्षेत्र सीमित होता जा रहा है, मनुष्य आत्मकेन्द्रित होता जा रहा है। यही कारण है कि आज के समाज में 'पड़ोस कल्चर' लगभग लुप्त होता जा रहा है। किसी के पास इतना समय नहीं है कि वह अपने पड़ोसियों से मिलकर बात-चीत करें, उनके सुख-दुःख कों बाँटें, या तीज त्योहार साथ मनाएँ।

प्रश्न 3 लेखिका द्वारा पढ़े गए उपन्यासों की सूची बनाइए और उन उपन्यासों को अपने पुस्तकालय में खोजिए।

उत्तर- मनु भंडारी के द्वारा पढ़े गए कुछ चर्चित उपन्यास-

·       सुनीता।

·       शेखर: एक जीवनी।

·       नदी के द्वीप।

·       त्यागपत्र।

·       चित्रलेखा।

प्रश्न 4 आप भी अपने दैनिक अनुभवों को डायरी में लिखिए।

उत्तर- 15 सितम्बर 2014

आज हमारी परीक्षा का अंतिम दिन था इसलिए मन सुबह से अति प्रसन्न था। मैं और मेरा छोटा भाई विद्यालय की ओर रोज की भाँति निकल पड़े। आधे रास्ते तक पहुँचे ही थे कि एक कुत्ते के करहाने की आवाज सुनाई पड़ी। हम दोनों उसके पास पहुँचे तो देखा उसके पैर से खून बह रहा था। मेरा मन उसे उस हालत में छोड़ने कतई तैयार नहीं हुआ। भाई को मैंने विद्यालय जाकर प्राचार्य से स्थिति से अवगत कराने के लिए कहा तथा उसे मैं फ़ौरन घर ले गया और माँ के हाथों सौप दिया। माँ ने उसकी मरहम-पट्टी की। पिताजी ने जल्दी से स्कूटर से मुझे विद्यालय पहुँचा दिया और प्राचार्य की अनुमति से मुझे परीक्षा में बैठने दिया गया और अतिरिक्त समय भी दिया गया। उस दिन से वह कुत्ता हमारे घर का सदस्य बन गया।

भाषा-अध्ययन प्रश्न (पृष्ठ संख्या 101)

प्रश्न 1 इस आत्मकथ्य में मुहावरों का प्रयोग करके लेखिका ने रचना को रोचक बनाया है। रेखांकित मुहावरों को ध्यान में रखकर कुछ और वाक्य बनाएँ-

a.   इस बीच पिता जी के एक निहायत दकियानूसी मित्र ने घर आकर अच्छी तरह पिता जी की लू उतारी।

b.   वे तो आग लगाकर चले गए और पिता जी सारे दिन भभकते रहे।

c.   बस अब यही रह गया है कि लोग घर आकर थू-थू करके चले जाएँ।

d.   पत्र पढ़ते ही पिता जी आग-बबूला हो गए।

उत्तर-

a.   लू उतारी- होमवर्क न करने से शिक्षक ने अच्छी तरह से छात्र की लू उतारी।

b.   आगलगाना- कुछ मित्र ऐसे भी होते हैं जो घर में आग लगाने का काम करते हैं।

c.   थू-थू करना- तुम्हारे इस तरह से ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने से पड़ोसी थू-थू करेंगे।

d.   आग-बबूला- मेरे स्कूल नहीं जाने से पिताजी आग-बबूला हो गए।


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