Aatmkathya class 10 NCERT Solutions For Hindi Kshitiz Chapter 3

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Discovering the depths of one's soul is a journey like no other, and when students in Class 10 Hindi encounter आत्मकथ्य, they embark on just such an adventure. This chapter isn't simply a part of the curriculum; it is a gateway to introspection, understanding oneself through the power of words. आत्मकथ्य, or self-narrative, is an expression of the innermost thoughts and feelings, a mirror reflecting the poet's heart and mind.

Dive into the essence of this chapter, where every verse is a question and every poetic line is an answer to the mysteries of life. For a young mind, this poem is not just a composition to read but a conversation with the self, an opportunity to engage in a silent dialogue. It encourages learners to ponder, 'What is the core of my being?' 'How do my thoughts and feelings shape the person I am?' This lyrical voyage is not limited to finding the right answers for exams but extends to grasping the meaning of personal experiences and existence.

Teachers find this poem a refreshing challenge, an opening to discuss life's deeper philosophies with the bright young individuals in their classrooms. Parents see their children delving into the layers of this text, gleaning life lessons about self-awareness and personal growth. As students explore the कविता की व्याख्या, they learn to appreciate literature not just for its aesthetic beauty but for its ability to provoke thought and inspire change.

आत्मकेंद्रित, or being self-centered, takes a new, positive turn here. It's about focusing on developing self-understanding and empathy through the study of this chapter. As learners prepare to answer the आत्मकथ्य प्रश्न उत्तर, they are also preparing for life's many tests. Every question they answer about the poem adds another piece to the puzzle of who they are and who they could become.

For every student, teacher, and parent involved in the educational journey of Class 10 Hindi, आत्मकथ्य offers a unique learning experience. It weaves together the curriculum with the quest for personal identity and encourages young learners to articulate their narratives confidently. This chapter is a celebration of self-discovery, a lesson that remains with the students long after they've answered the final question in their exams. It's a passage that tells them that the story they write about themselves is perhaps the most important story they will ever tell.

अध्याय-3: आत्मकथ्य

आत्मकथ्य कविता की व्याख्या - Aatmkathya class 10 summary


मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी अपनी यह,

मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।

इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्‍य जीवन-इतिहास

यह लो, करते ही रहते हैं अपने व्‍यंग्‍य मलिन उपहास

तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।

तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।


अर्थ - इस कविता में कवि ने अपने अपनी आत्मकथा न लिखने के कारणों को बताया है। कवि कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति का मन रूपी भौंरा प्रेम गीत गाता हुआ अपनी कहानी सुना रहा है। झरते पत्तियों की ओर इशारा करते हुए कवि कहते हैं कि आज असंख्य पत्तियाँ मुरझाकर गिर रही हैं यानी उनकी जीवन लीला समाप्त हो रही है। इस प्रकार अंतहीन नील आकाश के नीचे हर पल अनगिनित जीवन का इतिहास बन और बिगड़ रहा है। इस माध्यम से कवि कह रहे हैं की इस संसार में हर कुछ चंचल है, कुछ भी स्थिर नही है। यहाँ प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे के मज़ाक बनाने में लगे हैं, हर किसी को दूसरे में कमी नजर आती है। अपनी कमी कोई नही कहता, यह जानते हुए भी तुम मेरी आत्मकथा जानना चाहते हो। कवि कहता है कि यदि वह उन पर बीती हुई कहानी वह सुनाते हैं तो लोगों को उससे आनंद तो मिलेगा, परन्तु साथ ही वे यह भी देखेंगे की कवि का जीवन सुख और प्रसन्नता से बिलकुल ही खाली है।


किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले-

अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।

यह विडंबना! अरी सरलते हँसी तेरी उड़ाऊँ मैं।

भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।

उज्‍ज्‍वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।

अरे खिल-खिलाकर हँसतने वाली उन बातों की।

मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्‍वप्‍न देकर जाग गया।

आलिंगन में आते-आते मुसक्‍या कर जो भाग गया।

 

अर्थ - कवि कहते हैं कि उनका जीवन स्वप्न के समान एक छलावा रहा है। जीवन में जो कुछ वो पाना चाहते हैं वह सब उनके पास आकर भी दूर हो गया। यह उनके जीवन की विडंबना है। वे अपनी इन कमज़ोरियों का बखान कर जगहँसाई नही करा सकते। वे अपने छले जाने की कहानी नहीं सुनाना चाहता। जिस प्रकार सपने में व्यक्ति को अपने मन की इच्छित वस्तु मिल जाने से वह प्रसन्न हो जाता है, उसी प्रकार कवि के जीवन में भी पएक बार प्रेम आया था परन्तु वह स्वपन की भांति टूट गया। उनकी सारी आकांक्षाएँ महज मिथ्या बनकर रह गयी चूँकि वह सुख का स्पर्श पाते-पाते वंचित रह गए। इसलिए कवि कहते हैं कि यदि तुम मेरे अनुभवों के सार से अपने जीवन का घड़ा भरने जा रहे हो तो मैं अपनी उज्जवल जीवन गाथा कैसे सुना सकता हूँ।


जिसके अरूण-कपोलों की मतवाली सुन्‍दर छाया में।

अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

उसकी स्‍मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।

सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्‍यों मेरी कंथा की?

छोटे से जीवन की कैसे बड़े कथाएँ आज कहूँ?

क्‍या यह अच्‍छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?

सुनकर क्‍या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्‍मकथा?

अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्‍यथा।


अर्थ - इन पंक्तियों में कवि अपने सुन्दर सपनों का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि उनके जीवन में कुछ सुखद पल आये जिनके सहारे वे वर्तमान जीवन बिता रहे हैं। उन्होंने प्रेम के अनगनित सपने संजोये थे परन्तु वे सपने मात्र रह गए, वास्तविक जीवन में उन्हें कुछ ना मिल सका। कवि अपने प्रेयसी के सुन्दर लाल गालों का वर्णन करते हुए कहते हैं कि मानो भोर अपनी लाली उनकी प्रेयसी के गालों की लाली से प्राप्त करती है परन्तु अब ऐसे रूपसी की छवि अब उनका सहारा बनकर रह गयी है क्योंकि वास्तविक जीवन वे क्षण कवि को मिलने से पहले ही छिटक कर दूर चले गए। इसलिए कवि कहते हैं कि मेरे जीवन की कथा को जानकर तुम क्या करोगे, अपने जीवन को वे छोटा समझ कर अपनी कहानी नही सुनाना चाहते। इसमें कवि की सादगी और विनय का स्पष्ट प्रमाण मिलता है। वे दूसरों के जीवन की कथाओं को सुनने और जानने में ही अपनी भलाई समझते हैं। वे कहते हैं कि अभी उनके जीवन की कहानी सुनाने का वक़्त नही आया है। मेरे अतीतों को मत कुरेदो, उन्हें मौन रहने दो।


 

NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 10 HINDI KSHITIZ CHAPTER 3

प्रश्न-अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 23)

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प्रश्न 1 कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है?

उत्तर- कवि आत्मकथा लिखने से बचना चाहता था क्योंकि उसे लगता था कि उसका जीवन साधारण-सा है। उसमें कुछ भी ऐसा नहीं जिससे लोगों को किसी प्रकार की प्रसन्नता प्राप्त हो सके। उसका जीवन अभावों से भरा हुआ था जिन्हें वह औरों के साथ बांटना नहीं चाहता था। उसके जीवन में किसी के प्रति कोमल भाव अवश्य था जिसे वह किसी को बताना नहीं चाहता था।

प्रश्न 2 आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में 'अभी समय भी नहीं' कवि ऐसा क्यों कहता है?

उत्तर- कवि कहता है कि उसके लिए आत्मकथा सुननाने का यह उचित समय नहीं है। कवि द्वारा ऐसा कहने का कारण है यह है कि कवि को अभी सुखों के सिवाय और कोइ उपलब्धि नहीं मिल सकी है। कवि का जीवन दुःख और अभावों से भरा रहा हैं। कवि को अपने जीवन में जो बाहरी पीड़ा मिली है, उसे वह चुपचाप अकेले ही सहा है। जीवन का इस पड़ाव पर उसके जीवन के सभी दुःख तथा व्यथाएँ थककर सोई हुई है, अर्थात बहुत मुश्किल से कवि को अपनी पुराणी वेदना से मुक्ति मिल चुकी है। आत्मकथा लिखने के लिए के लिए कवि को अपने जीवन की उन सभी व्यथाओं को जगाना होगा और कवि ऐसा प्रतीत होता है कि अभी उसके जीवन में ऐसी कोइ उपलब्धि नहीं मिली है जिसे वह लोगों के सामने प्रेरणास्वरूप रख सके। इन्हीं कारणों से कवि अपनी आत्मकथा अभी नहीं लिखना चाहता।

प्रश्न 3 स्मृति को 'पाथेय' बनाने से कवि का क्या आशय है?

उत्तर- स्मृति को 'पाथेय' बनाने से कवि का आशय जीवनमार्ग के प्रेरणा से है। कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था, वह उसे कभी प्राप्त नहीं हुआ। इसलिए कवि स्वयं को जीवन - यात्रा से थका हुआ मानता है। जिस प्रकार 'पाथेय' यात्रा में यात्री को सहारा देता है, आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है ठिक उसी प्रकार स्वप्न में देखे हुए किंचित सुख की स्मृति भी कवि को जीवन - मार्ग में आगे बढ़ने का सहारा देता है।

प्रश्न 4 भाव स्पष्ट कीजिये-

a.   मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।

आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।

b.   जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।

अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

उत्तर-

a.   कवि का मानना है कि उसे अपने जीवन में सुखों की प्राप्ति नहीं हुई। हर व्यक्ति की तरह वह भी अपने जीवन में सुखों की प्राप्ति करना चाहता था। अवचेतन में छिपे सुख के भावों के कारण कवि ने भी सुख भरा सपना देखा था पर वह सुख उसे वास्तव में प्राप्त कभी नहीं हुआ। वह सुख उसके बिल्कुल पास आते-आते मुस्करा कर दूर भाग गया।

b.   कवि का प्रियतम अति सुंदर था। उसकी गालों पर मस्ती भरी लाली छाई हुई थी। उसकी सुंदर छाया में प्रेमभरी भोर भी अपने सुहाग की मधुरिमा प्राप्त करती थी।

प्रश्न 5 'उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की'- कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?

उत्तर- प्रसाद जी एक सीधे-सादे व्यक्तित्व के इंसान थे। उनके जीवन में दिखावा नहीं था। वे अपने जीवन के सुख-दुख को लोगों पर व्यक्त नहीं करना चाहते थे, अपनी दुर्बलताओं को अपने तक ही सीमित रखना चाहते थे। अपनी दुर्बलताओं को समाज में प्रस्तुत कर वे स्वयं को हँसी का पात्र बनाना नहीं चाहते थे। पाठ की कुछ पंक्तियाँ उनके वेदना पूर्ण जीवन को दर्शाती है। इस कविता में एक तरफ़ कवि की यथार्थवादी प्रवृति भी है तथा दूसरी तरफ़ प्रसाद जी की विनम्रता भी है। जिसके कारण वे स्वयं को श्रेष्ठ कवि मानने से इनकार करते हैं।

प्रश्न 6 आत्मकथ्य' कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।

उत्तर- जयशंकर प्रसाद' द्वारा रचित कविता 'आत्मकथ्य' की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1.   प्रस्तुत कविता में कवि ने खड़ी बोली हिंदी भाषा का प्रयोग किया है-

2.   अपने मनोभावों को व्यक्त कर उसमें सजीवता लाने के लिए कवि ने ललित, सुंदर एवं नवीन बिम्बों का प्रयोग किया है। कविता में बिम्बों का प्रयोग किया है।

3.   विडंबना, प्रवंचना जैसे नवीन शब्दों का प्रयोग किया गया है जिससे काव्य में सुंदरता आई है।

4.   मानवेतर पदार्थों को मानव की तरह सजीव बनाकर प्रस्तुत किया गया है। यह छायावाद की प्रमुख विशेषता रही है।

5.   अलंकारों के प्रयोग से काव्य सौंदर्य बढ़ गया है।

प्रश्न 7 कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है?

उत्तर- कवि ने सुख के जिस स्वप्न को देखा था उसे वह प्राप्त नहीं कर पाया था। वह स्वप्न तो ही रह गया था पर उसकी याद कवि के मन में गहराई से जमी हुई थी। कवि के हृदय में अपने प्रिय की सुखद छवि विद्यमान थी। उसका प्रिय भोला-भाला था जिसके लिए कवि ने ‘सरलते’ शब्द का प्रयोग किया है। उसके लिए अतीत के उन रस से भीगे दिनों को भुला पाना कभी भी संभव नहीं हो पाया। वे प्यार-भरी मधुर चाँदनी रातें उसके लिए सदा याद रखने योग्य थीं। वे उसे अलौकिक आनंद प्रदान करती थीं। प्रिय की हंसी का स्रोत उसके जीवन के कण-कण को सराबोर किए रहता था पर वह कल्पना मात्र था। जब तक सपना आँखों के सामने छाया रहा तब तक वह प्रसन्नता से भरा रहा पर स्वप्न के समाप्त होते ही जीवन की वास्तविकता उसके सामने आ गई। उसकी आनंद-कल्पना अधूरी रह गई। उसका प्रिय अपार सौंदर्य का स्वामी था। उसकी गालों की सौंदर्य-लालिमा के सामने तो उषा की लालिमा भी फीकी थी पर अब तो वह दृश्य ही बदल गया है।

रचना और अभिव्यक्ति प्रश्न (पृष्ठ संख्या 23)

प्रश्न 1 इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर- प्रसाद जी एक सीधे-सादे व्यक्तित्व के इंसान थे। उनके जीवन में दिखावा नहीं था। वे अपने जीवन के सुख-दुख को लोगों पर व्यक्त नहीं करना चाहते थे, अपनी दुर्बलताओं को अपने तक ही सीमित रखना चाहते थे। अपनी दुर्बलताओं को समाज में प्रस्तुत कर वे स्वयं को हँसी का पात्र बनाना नहीं चाहते थे। पाठ की कुछ पंक्तियाँ उनके वेदना पूर्ण जीवन को दर्शाती है। इस कविता में एक तरफ़ कवि की यथार्थवादी प्रवृति भी है तथा दूसरी तरफ़ प्रसाद जी की विनम्रता भी है। जिसके कारण वे स्वयं को श्रेष्ठ कवि मानने से इनकार करते हैं।

प्रश्न 2 आप किन व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहेंगे और क्यों?

उत्तर- नीचे कुछ महान व्यक्तियों की आत्मकथा का उल्लेख किया गया है। हमें उनकी आत्मकथा पढ़कर उनसे शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए-

1.   महात्मा गाँधी की आत्मकथा- हमें महात्मा गाँधी की आत्मकथा पढ़नी चाहिए। इससे हमें सत्य तथा अहिंसा के महत्व की जानकारी मिलती है।

2.   भगत सिंह की आत्मकथा- देशभक्त भगतसिंह की आत्मकथा को पढ़ने से हमें देश भक्ति की प्रेरणा मिलती है।

3.   महावीर प्रसाद द्विवेदी की आत्मकथा- प्रसिद्ध साहित्यकार महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का जीवन अत्यंत संघर्षपूर्ण रहा है। एक महान साहित्यकार के रुप से हमें उनकी आत्मकथा पढ़नी चाहिए।

प्रश्न 3 कोई भी अपनी आत्मकथा लिख सकता है। उसके लिए विशिष्ट या बड़ा होना जरूरी नहीं। हरियाणा राज्य के गुड़गाँव में घरेलू सहायिका के रूप में काम करने वाली बेबी हालदार की आत्मकथा बहुतों के द्वारा सराही गई। आत्मकथात्मक शैली में अपने बारे में कुछ लिखिए।

उत्तर- मैं अपने जीवन में कुछ ऐसा करना चाहती हूँ जिससे समाज में मेरा नाम हो, प्रतिष्ठा हो, और लोग मेरे कारण मेरे परिवार को पहचानें। जीवन तो सभी प्राणी भगवान से प्राप्त करते हैं। पशु भी जीवित रहते हैं पर उनका जीवन भी क्या जीवन है? अनजाने-से इस दुनिया में आते हैं और वैसे ही मर जाते हैं। मैं अपना जीवन ऐसे व्यतीत नहीं करना चाहती। मैं तो चाहती हूँ कि मेरी मृत्यु भी ऐसी हो जिस पर सभी गर्व करें और युगों तक मेरा नाम प्रशंसापूर्वक लेते रहें। मेरे कारण मेरे नगर और मेरे देश का नाम ख्याति प्राप्त करे। कल्पना चावला इस संसार में आई और चली गई। उसका धरती पर आना तो सामान्य था पर उसका यहाँ से जाना सामान्य नहीं था। आज उसे सारा देश ही नहीं सारा संसार जानता है। उसके कारण उसके नगर करनाल का नाम अब सभी की जुबान पर है। मैं भी चाहती हूँ कि मैं अपने जीवन में इतना परिश्रम करूँ कि मुझे विशेष पहचान मिले। मैं अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने देश की कीर्ति का कारण बनूँ।

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